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Kojagari Puja 2023: क्यों मनाई जाती है कोजागरी पूर्णिमा,जानें मां लक्ष्मी के पूजन का शुभ मुहूर्त और महत्व

Lucknow Desk: घर में धन, वैभव, सुख और शांति प्राप्त करने के लिए लोग मां लक्ष्मी की पूजा करता हैं। वहीं आश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। जिसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह कोजागरी पूर्णिमा 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में इस पूर्णिमा का खास महत्व होता है। माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा से अमृत बरसता है। इस दिन इंद्र, चंद्रमा, श्रीहरि और महालक्ष्मी जी की पूजा का भी विधान है।

कोजागर पूजा का शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 28 अक्टूबर सुबह 04 बजकर 17 मिनट पर हो रहा है। वहीं इसका समापन 29 अक्टूबर को सुबह 01 बजकर 53 मिनट पर होगा। कोजागरी पूजा, निशिता काल में करने का विधान है। ऐसे में पूजा का शुभ मुहूर्त 28 अक्टूबर, रात 11 बजकर 39 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। वहीं इस दिन चन्द्रोदय शाम 05 बजकर 19 मिनट पर होगा।

क्यों मनाई जाती है कोजागरी पूर्णिमा

कोजागरी पूर्णिमा को कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां लक्ष्मी का जन्म इसी दिन हुआ था। यह पर्व विशेष तौर पर मिथिलांचल, बंगाल या उड़ीसा में मनाया जाता है। इस दिन रात्रि के समय मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इस पूर्णिमा में पूजन करने से लक्ष्मी मां की कृपा सदा घर में बनी रहती है और घर के सदस्यों को धन-दौलत के भंडार का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में मां लक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है।

कोजागर पूजा का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान धन की देवी मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसलिए शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन को कई स्थानों पर कोजागर पूजा के नाम से जाना जाता है। ऐसे में कोजागर पूजा का दिन भी मां लक्ष्मी की आराधना के लिए समर्पित है। इस दिन दीपावली की तरह ही मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। ऐसा करने से व्यक्ति को धन संबंधी सभी प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।

माँ लक्ष्मी का वाहन उल्लू क्यों?

पुराणों के अनुसार सृष्टि की रचना के बाद देवता जीवलोक के दर्शन के लिए आये। चूँकि तब उनके पास कोई वाहन नहीं था, इसलिए उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पैदल ही जाना पड़ता था। यह देखकर विभिन्न जानवरों और पक्षियों ने देवी-देवताओं से कहा कि वे देवताओं के वाहन बनना चाहते हैं। इस प्रकार अलग-अलग देवी-देवता किसी एक पशु या पक्षी को अपने वाहन के रूप में चुनते हैं। देवी लक्ष्मी के वाहन के रूप में चुने जाने के लिए सभी पशु कुलों के बीच एक भयंकर प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। सभी ने धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का वाहन बनने में रुचि व्यक्त की।

तब लक्ष्मी ने कहा कि वह हर कार्तिक अमावस्या को मृत्युलोक में आएंगी। वह अपने वाहन के रूप में उस जानवर को चुनेंगे जो अगली कार्तिक अमावस्या में सबसे पहले उनके पास आएगा। अगली कार्तिक अमावस्या की रात, जबकि अन्य नश्वर प्राणी सो गए, उल्लू सहित कुछ अन्य रात्रिचर प्राणी जाग रहे थे। अमावस्या की रात्रि के गहन अंधकार में उल्लू की दृष्टि अत्यंत तीव्र हो जाती है। परिणाम स्वरूप मां लक्ष्मी को दूर से देखकर उल्लू सबसे पहले उड़कर उनके चरणों तक पहुंच गया। तभी से इस रात्रि पक्षी को देवी लक्ष्मी के वाहन के रूप में नियुक्त किया जाने लगा।

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